NATURE CARE SOCIETY

प्राकृतिक चिकित्सा में यह माना जाता है कि जीवन का संचालन एक विचित्र और सर्वशक्तिमान सत्ता द्वारा होता है जो प्रत्येक व्यक्ति के पार्श्व में रहकर जन्म होने, मरने, स्वास्थ्य और रोग आदि बातों की देखभाल करती है। उस महान शक्ति को प्राकृतिक चिकित्सक ``जीवनीशक्ति `` कहते हैं। ईश्वर में विश्वास रखने वाले लोग इसे ईश्वरी शक्ति कहते हैं और ईश्वर को न मानने वाले उसे प्रकृति मानते हैं। हमारे शरीर में यही शक्ति रोग से मुक्ति देकर हमें अरोग्यता भी प्रदान करती है। प्राकृतिक चिकित्सा वह शक्ति है जो हमारे शरीर के आंतरिक भाग में निहित होती है। केवल यही हमारे स्वास्थ्य को बनाये रख सकती है और रोग को दूर कर सकती है।
   
      प्राकृतिक चिकित्सा क्यों ?
     प्राचीन काल से ही पंच महाभूतों -पृथ्वी,जल,अग्नि,वायु एवं आकाश तत्व की महत्ता को स्वीकारा है। हमारा शरीर इन्ही पंचतत्वों से निर्मित है, प्रकृति के नियमों की अवहेलना एवं अप्राकृतिक खान-पान से हमारा शरीर रोगग्रस्त हो रहा । प्रकृति का नियम है कि 'प्रकृति ने जो वस्तु जिस रुप में दी है उसे उसका रुप बिगाडे बिना प्रयोग किया जाय ।'  परन्तु आज के इस आपाधापी के युग में ऐसा सम्भव नही हो पाता परिणामस्वरुप व्यक्ति रोगी हो जाता है।
            
          प्राकृतिक चिकित्सा रोग को दबाती नही बल्कि यह समस्त आधि-व्याधियों एवं साघ्य असाघ्य रोगों को जड़ मूल से मिटा सकती है। अन्य चिकित्सा विधियों से तो सिर्फ रोगो की आक्रामकता को कुछ समय के लिए रोका/दबाया जा सकता है, परन्तु समस्त रोगों का उपचार तो प्रकृति ही करती है।
प्राकृतिक चिकित्सा एक चिकित्सा पद्धति ही नही बल्कि जीवन जीने की कला भी है जो हमें आहार,निद्रा,सूर्य का प्रकाश, स्वच्छ पेयजल,विशुद्ध हवा, सकारात्मकता एवं योगविज्ञान का समुचित ज्ञान कराती है।
                सोचिये !                

      
वास्तव में यह सोचनीय विषय है की नित नई दवाएं ईजाद हो रही हैं, नए मेडिकल कालेज खुल रहे हैं औए उनमें से हजारों की संख्या में डॉक्टर निकल रहे हैं , फिर भी रोग और रोगियों की संख्या में वृवास्तव द्धी होती जा रही है | निश्चित रूप से रोगी होने के लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं – अप्राकृतिक आहार,विहार और विचार मूलतः रोगों का कारण है | यदि हम प्राकृतिक जीवन शैली को अपना लें तो बिना किसी दवा या चिकित्सक के पहले सुख का सपना साकार हो सकता है |
        आयुर्वेद का कथन है -” प्रकृति स्मामिक्षस्मरेत ” अर्थात ‘प्रकृति का सदैव अनुसरण करो |” मनुष्यों से दूर जंगल में रहने वाले जीव-जंतु कम बीमार पड़ते हैं और बीमार पड़ने पर जल्द ही स्वस्थ्य हो जाते हैं | उन्हें किसी दवा की जरूरत नही पडती वे कोई टॉनिक नही पीते फिर भी वे मनुष्य से अधिक शक्तिशाली होते हैं | उनकी माँ गर्भकाल में कोई कथित स्वस्थ्य संबर्द्धक औषधियां नही लेती न ही कोई विटामिन/आयरन आदि खनिजों को गोलियों के रूप खाती हैं फिर भी वे बिना किसी सर्जरी,बिना किसी कष्ट के अपने बच्चे को जन्म देती हैं,वह भी ऐसे बच्चे को जो जन्म से ही फुदकने दौड़ने लगे, मनुष्य की तरह कोमल सुकुमार शिशु की तरह नहीं जिसको एक फूल की चोट लगते ही शरीर पर खून की लाली उभर आये      ऐसा इसलिए है की जानवर प्रकृति के सानिध्य में रहते हैं और प्रकृति प्रदत्त भोजन करते हैं | 
                          

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